Yuvirajsinh Jadeja:
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देवेन्द्रनाथ ठाकुर
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(15 मई 1817 – 19 जनवरी 1905) हिन्दू दार्शनिक, ब्रह्मसमाजी तथा धर्मसुधारक थे। १८४८ में ब्रह्म समाज के संस्थापकों में से एक थे।
📌🔰देवेन्द्रनाथ ठाकुर अथवा 'देवेन्द्रनाथ टैगोर'
कलकत्ता निवासी श्री द्वारकानाथ ठाकुर के पुत्र थे, जो प्रख्यात विद्वान और धार्मिक नेता थे। अपनी दानशीलता के कारण उन्होंने 'प्रिंस' की उपाधि प्राप्त की थी। पिता से उन्होंने ऊँची सामाजिक प्रतिष्ठा तथा ऋण उत्तराधिकार में प्राप्त किया था। नोबेल पुरस्कार विजेता
रबीन्द्रनाथ ठाकुर देवेंद्रनाथ ठाकुर के पुत्र थे।
💢देवेंद्रनाथ ठाकुर का जन्म सन् १८१८ में बंगाल में हुआ था। इनकी शिक्षा-दीक्षा हिंदू कॉलेज में हुई जहाँ संशयवाद का पाठ पढ़ाया जाता था और उसकी प्रशंसा होती थी। इनका लालन पालन अपार धन तथा वैभव में हुआ।
📌२२ वर्ष की अवस्था में इन्होंने ' तत्वबोधिनी सभा' स्थापित की। इसका मुख्य ध्येय था लोगों को 'ब्राह्मधर्म' का पाठ पढ़ाना। इस सभा ने मौलिक शास्त्रों को जानने तथा वर्तमान समय तक उनमें किए गए परिवर्तनों के संबध में ज्ञान प्राप्त करने का निश्चय किया। इसने नैतिकता की एक परंपरा बनाई। धीरे धीरे देवेंद्रनाथ की यह सभा लोकप्रिय होने लगी और कुछ प्रभावशाली हिंदू इसके सदस्य बन गए।
हर सप्ताह इसकी एक बैठक होती थी जिसमें भगवद्भजन और प्रवचन होते थे।
📌 सन् १८४२ में देवेंद्रनाथ ने ब्रह्मसमाज में पदार्पण किया। राजा राममोहन राय के इंग्लैंड चले जाने पर ब्रह्मसमाज शिथिल पड़ने लगा। समाज में प्रति सप्ताह नाना प्रकार के लोग एकत्रित होते थे और भजन प्रवचन सुनकर चले जाते थे। इससे अधिक कुछ नहीं।
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देवेन्द्रनाथ ठाकुर
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(15 मई 1817 – 19 जनवरी 1905) हिन्दू दार्शनिक, ब्रह्मसमाजी तथा धर्मसुधारक थे। १८४८ में ब्रह्म समाज के संस्थापकों में से एक थे।
📌🔰देवेन्द्रनाथ ठाकुर अथवा 'देवेन्द्रनाथ टैगोर'
कलकत्ता निवासी श्री द्वारकानाथ ठाकुर के पुत्र थे, जो प्रख्यात विद्वान और धार्मिक नेता थे। अपनी दानशीलता के कारण उन्होंने 'प्रिंस' की उपाधि प्राप्त की थी। पिता से उन्होंने ऊँची सामाजिक प्रतिष्ठा तथा ऋण उत्तराधिकार में प्राप्त किया था। नोबेल पुरस्कार विजेता
रबीन्द्रनाथ ठाकुर देवेंद्रनाथ ठाकुर के पुत्र थे।
💢देवेंद्रनाथ ठाकुर का जन्म सन् १८१८ में बंगाल में हुआ था। इनकी शिक्षा-दीक्षा हिंदू कॉलेज में हुई जहाँ संशयवाद का पाठ पढ़ाया जाता था और उसकी प्रशंसा होती थी। इनका लालन पालन अपार धन तथा वैभव में हुआ।
📌२२ वर्ष की अवस्था में इन्होंने ' तत्वबोधिनी सभा' स्थापित की। इसका मुख्य ध्येय था लोगों को 'ब्राह्मधर्म' का पाठ पढ़ाना। इस सभा ने मौलिक शास्त्रों को जानने तथा वर्तमान समय तक उनमें किए गए परिवर्तनों के संबध में ज्ञान प्राप्त करने का निश्चय किया। इसने नैतिकता की एक परंपरा बनाई। धीरे धीरे देवेंद्रनाथ की यह सभा लोकप्रिय होने लगी और कुछ प्रभावशाली हिंदू इसके सदस्य बन गए।
हर सप्ताह इसकी एक बैठक होती थी जिसमें भगवद्भजन और प्रवचन होते थे।
📌 सन् १८४२ में देवेंद्रनाथ ने ब्रह्मसमाज में पदार्पण किया। राजा राममोहन राय के इंग्लैंड चले जाने पर ब्रह्मसमाज शिथिल पड़ने लगा। समाज में प्रति सप्ताह नाना प्रकार के लोग एकत्रित होते थे और भजन प्रवचन सुनकर चले जाते थे। इससे अधिक कुछ नहीं।